यह कानून वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन, रजिस्ट्रेशन और निगरानी को लेकर संशोधन करता है।
इसमें वक्फ बोर्डों की शक्तियों और जिम्मेदारियों को बदला गया है।
नए प्रावधानों में सरकारी अधिकारियों को कुछ अतिरिक्त अधिकार मिले हैं।
अब तक इस कानून के खिलाफ 73 याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं।
सुनवाई चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच कर रही है।
आज (16 अप्रैल 2025) महत्वपूर्ण सुनवाई हो रही है, जिसमें फैसला आ सकता है कि यह कानून संविधान के अनुरूप है या नहीं।
संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन बताया गया है।
कहा गया कि मुस्लिम समुदाय की धार्मिक संपत्तियों में सरकार का हस्तक्षेप नाजायज है।
कानून में गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में नियुक्त करने की छूट दी गई है।
मुस्लिम संगठन इसे धार्मिक स्वशासन पर हमला मानते हैं।
सरकार को वक्फ संपत्तियों की पहचान व स्वामित्व निर्धारण में दखल का अधिकार मिलना चिंता का विषय बना है।
इससे वक्फ संपत्तियों के छिनने का खतरा बताया गया है।
बीजेपी का कहना है कि ये कानून वक्फ प्रॉपर्टी के दुरुपयोग को रोकने और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए लाया गया है।
सरकार का दावा है कि कानूनन वैध वक्फ संपत्ति को छीना नहीं जाएगा।
बस रिकॉर्ड सही किया जाएगा और अनधिकृत कब्जे रोके जाएंगे।